अचानक से बढ़ता वजन, लगातार थकान, बालों का झड़ना, मूड में बदलाव और अनियमित पीरियड्स – अक्सर इन्हें काम का तनाव या बढ़ती उम्र मानकर नजरअंदाज कर दिया जाता है। कई बार इन्हीं साधारण से दिखने वाले संकेतों के पीछे कारण होता है महिलाओं में थायराइड की समस्याएं। जब तक सही जांच नहीं होती, तब तक पता ही नहीं चलता कि यह सिर्फ कमजोरी नहीं, बल्कि हार्मोन असंतुलन है।
दुनिया भर के शोध बताते हैं कि हर 8 में से 1 महिला अपने जीवनकाल में किसी न किसी रूप में थायराइड की बीमारी से गुजरती है। भारतीय महिलाओं में भी Thyroid Problems in Women बहुत आम हैं, लेकिन जागरूकता कम होने की वजह से अधिकतर मामलों का पता देर से चलता है। थायराइड हार्मोन शरीर के चयापचय, दिल की धड़कन, तापमान, दिमाग, त्वचा, बाल और यहां तक कि गर्भधारण और गर्भावस्था पर गहरा असर डालते हैं। ऐसे में थायराइड असंतुलन न सिर्फ सेहत, बल्कि प्रजनन क्षमता और जीवन की गुणवत्ता पर भी सीधा असर डाल सकता है।
“थायराइड विकार अक्सर चुपचाप बढ़ते हैं, इसलिए हल्के लगने वाले लक्षणों को भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।” – एक वरिष्ठ एंडोक्रिनोलॉजिस्ट
इस लेख में महिलाओं में थायराइड की समस्याएं, उनके शुरुआती thyroid symptoms, जरूरी परीक्षण और उपलब्ध उपचार विकल्पों को सरल भाषा में समझाया गया है। रांची और आसपास के क्षेत्रों के लिए खास बात यह है कि राज हॉस्पिटल्स पिछले 30+ वर्षों से महिलाओं के थायराइड और अन्य हार्मोन संबंधी रोगों के लिए सुपर‑स्पेशियलिटी देखभाल देता है। यहां एंडोक्रिनोलॉजिस्ट, स्त्री रोग विशेषज्ञ, उन्नत डायग्नोस्टिक लैब और आधुनिक ऑपरेशन थिएटर एक ही छत के नीचे मौजूद हैं, जिससे सही समय पर सही जांच और इलाज संभव हो पाता है।
आगे पढ़ते हुए यह समझ आएगा कि थायराइड ग्रंथि क्या है, महिलाओं में यह समस्या ज्यादा क्यों दिखती है, शुरुआती लक्षण कैसे पहचानें, कौन‑कौन से टेस्ट जरूरी होते हैं और राज हॉस्पिटल्स जैसे केंद्र में कौन से उपचार विकल्प उपलब्ध होते हैं। इससे किसी भी महिला को यह तय करना आसान होगा कि कब लक्षणों को हल्के में न लेकर डॉक्टर से मिलना जरूरी है।
थायराइड ग्रंथि क्या है और यह कैसे काम करती है?

थायराइड ग्रंथि गर्दन के आगे वाले हिस्से में, नाड़ी के ठीक ऊपर, तितली के आकार की छोटी लेकिन बहुत असरदार ग्रंथि होती है। यह एक अंतःस्रावी ग्रंथि है, यानी यह हार्मोन बनाकर सीधे खून में छोड़ती है। आकार भले छोटा हो, लेकिन महिलाओं में थायराइड की समस्याएं जब होती हैं तो इसका असर पूरे शरीर पर महसूस होता है।
थायराइड मुख्य रूप से दो हार्मोन बनाती है – T4 (थायरोक्सिन) और T3 (ट्राईआयोडोथायरोनिन)। ये दोनों हार्मोन शरीर के चयापचय को नियंत्रित करते हैं, यानी शरीर ऊर्जा कितनी तेजी से खर्च करेगा। यही हार्मोन यह तय करते हैं कि वजन आसानी से बढ़ेगा या कंट्रोल में रहेगा, शरीर को कितनी गर्मी लगेगी, दिल कितनी तेजी से धड़केगा और दिन भर कितना जोश महसूस होगा।
थायराइड हार्मोन दिमाग और तंत्रिका तंत्र के लिए भी बहुत अहम माने जाते हैं। एकाग्रता, याददाश्त, नींद, मूड और मानसिक संतुलन पर इनका सीधा असर होता है। जब महिलाओं में थायराइड की समस्याएं लंबे समय तक अनदेखी रह जाती हैं, तो धीरे‑धीरे अवसाद, चिड़चिड़ापन और ध्यान की कमी जैसे लक्षण उभर सकते हैं।
थायराइड एक तीसरा हार्मोन भी बनाती है जिसे कैल्सीटोनिन कहा जाता है। यह हार्मोन खून में कैल्शियम के स्तर को संतुलित रखने में मदद करता है और हड्डियों के स्वास्थ्य में हिस्सा लेता है। इस तरह थायराइड को शरीर का मास्टर रेगुलेटर कहा जा सकता है, क्योंकि यह ऊर्जा, तापमान, दिल, दिमाग और हड्डियों – सब पर एक साथ काम करता है।
Are You Noticing Symptoms of Thyroid Problems in Women?
Unexplained weight changes, fatigue, hair fall, mood swings, and irregular periods can be early signs of thyroid issues. Early diagnosis and treatment can prevent complications. Raj Hospital Ranchi offers advanced thyroid testing and personalized treatment options.
Consult Our Thyroid Specialist Todayमहिलाओं में थायराइड की समस्याएं अधिक क्यों होती हैं?

तुलना की जाए तो पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में थायराइड की समस्याएं 5 से 8 गुना ज्यादा पाई जाती हैं। यानी एक ही घर में रहते हुए भी किसी महिला के लिए थायराइड विकार का खतरा पुरुष की तुलना में काफी अधिक होता है। ऐसे में महिलाओं में थायराइड की समस्याएं समझना और समय पर जांच कराना और भी जरूरी हो जाता है।
“थायराइड की बीमारी पुरुषों की तुलना में महिलाओं में कई गुना अधिक पाई जाती है।” – American Thyroid Association
एक बड़ा कारण ऑटोइम्यून रोग माने जाते हैं। कई थायराइड बीमारियां, जैसे हाशिमोटो रोग और ग्रेव्स रोग, ऐसी स्थितियां हैं जिनमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से अपनी ही थायराइड ग्रंथि पर हमला करने लगती है। शोध यह बताते हैं कि ऑटोइम्यून बीमारियां महिलाओं में बहुत ज्यादा दिखती हैं। माना जाता है कि महिला हार्मोन, खासकर एस्ट्रोजन, प्रतिरक्षा प्रणाली के कामकाज को प्रभावित करते हैं, जिससे ऐसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
आनुवंशिकता भी एक बड़ा कारण है। अगर परिवार में, खासकर मां, मौसी या दादी को थायराइड की समस्या रही हो, तो अगली पीढ़ी की महिलाओं में थायराइड की समस्याएं होने की संभावना और बढ़ जाती है। इसलिए परिवार में पहले से मौजूद इतिहास के बारे में डॉक्टर को बताना जरूरी होता है, ताकि समय पर जांच की जा सके।
महिलाओं के जीवन में कई ऐसे पड़ाव आते हैं जहां हार्मोन तेजी से बदलते हैं – जैसे किशोरावस्था, गर्भावस्था, डिलीवरी के बाद और रजोनिवृत्ति। इन समयों में पोस्टपार्टम थायरायडाइटिस, हाइपोथायरायडिज्म या हाइपरथायरायडिज्म जैसे विकार सामने आ सकते हैं या पहले से छिपी हुई समस्या उभर सकती है। साथ में काम का दबाव, नींद की कमी और मानसिक तनाव भी प्रतिरक्षा प्रणाली पर असर डालकर जोखिम बढ़ा सकते हैं।
राज हॉस्पिटल्स में महिलाओं के लिए खास क्लीनिक और स्त्री रोग विशेषज्ञों के साथ मिलकर थायराइड की नियमित स्क्रीनिंग की सुविधा दी जाती है, खासकर गर्भवती महिलाओं, नई मांओं और रजोनिवृत्ति के दौर से गुजर रहीं महिलाओं के लिए। इससे महिलाओं में थायराइड की समस्याएं जल्दी पकड़ी जा सकती हैं और लंबे समय तक चलने वाली जटिलताओं से बचाव हो पाता है।
थायराइड की सामान्य समस्याएं और उनके प्रकार
थायराइड विकारों को सामान्य तौर पर दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला, जहां थायराइड हार्मोन का स्तर गड़बड़ा जाता है – यानी हार्मोन कम बनते हैं या जरूरत से ज्यादा बनते हैं। दूसरा, जहां थायराइड की संरचना बदल जाती है – जैसे ग्रंथि में गांठें बनना या आकार बढ़ जाना। महिलाओं में थायराइड की समस्याएं अक्सर इन्हीं दोनों श्रेणियों से जुड़ी होती हैं।
आगे की उपधाराओं में हाइपोथायरायडिज्म, हाइपरथायरायडिज्म, हाशिमोटो रोग, थायराइड नोड्यूल और थायराइड कैंसर के बारे में विस्तार से चर्चा होगी, ताकि हर तरह की समस्या की स्पष्ट तस्वीर सामने आ सके।
हाइपोथायरायडिज्म (अंडरएक्टिव थायराइड)
हाइपोथायरायडिज्म वह स्थिति है जब थायराइड ग्रंथि पर्याप्त मात्रा में हार्मोन नहीं बना पाती। इसका नतीजा होता है धीमा चयापचय, सुस्ती और कई तरह के शारीरिक बदलाव। महिलाओं में थायराइड की समस्याएं देखते समय सबसे आम निदान इसी का होता है, खासकर मध्यम उम्र के बाद।
हाइपोथायरायडिज्म का सबसे आम कारण हाशिमोटो रोग है, जो एक ऑटोइम्यून स्थिति है। इसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली थायराइड की कोशिकाओं को धीरे‑धीरे नुकसान पहुंचाती है, जिससे ग्रंथि कमजोर हो जाती है और हार्मोन कम बनने लगते हैं। इसके अलावा थायराइड सर्जरी, गर्दन पर रेडिएशन थेरेपी, कुछ खास दवाएं और लंबे समय तक आयोडीन की कमी भी इस स्थिति को जन्म दे सकती हैं। भारत जैसे देश में जहां कई जगह आयोडीन की कमी रही है, वहां महिलाओं में थायराइड की समस्याएं इस वजह से भी दिख सकती हैं।
लक्षण शुरू में हल्के रहते हैं – जैसे लगातार थकान, सुस्ती और बिना वजह वजन बढ़ना। समय के साथ‑साथ ठंड ज्यादा लगना, त्वचा का सूखा और खुरदुरा होना, बालों का झड़ना, कब्ज, मांसपेशियों में दर्द, चेहरे पर सूजन और धीमी हृदय गति जैसे संकेत दिखने लगते हैं। कई महिलाओं में पीरियड्स भारी और अनियमित हो जाते हैं, जिससे एनीमिया भी बढ़ सकता है। यही सब मिलकर जीवन की रफ्तार को बहुत धीमा कर देते हैं।
हाइपोथायरायडिज्म की जांच के लिए सबसे जरूरी टेस्ट TSH और फ्री T4 होते हैं। TSH अधिक और T4 कम आने पर यह स्थिति साफ हो जाती है। इलाज में रोजाना लेवोथायरोक्सिन नाम की दवा दी जाती है, जो शरीर में कमी हो रहे हार्मोन की जगह लेती है। सही खुराक तय करने के लिए शुरू में हर कुछ हफ्तों में और बाद में साल में एक‑दो बार खून की जांच कराई जाती है।
अगर हाइपोथायरायडिज्म का इलाज न हो, तो कोलेस्ट्रॉल बढ़ सकता है, दिल की बीमारियां उभर सकती हैं और बहुत गंभीर स्थिति में मायक्सेडेमा कोमा जैसा जानलेवा खतरा भी बन सकता है। राज हॉस्पिटल्स में एंडोक्रिनोलॉजिस्ट रोगी की उम्र, वजन, गर्भावस्था की स्थिति और अन्य बीमारियों को देखकर व्यक्तिगत उपचार योजना बनाते हैं, ताकि महिलाओं में थायराइड की समस्याएं सुरक्षित और लंबे समय तक कंट्रोल में रह सकें।
हाइपरथायरायडिज्म (ओवरएक्टिव थायराइड)
हाइपरथायरायडिज्म इसके उलट स्थिति है। इसमें थायराइड जरूरत से ज्यादा हार्मोन बनाने लगती है, जिससे शरीर की मशीन बहुत तेज चलने लगती है। महिलाएं अक्सर कहती हैं कि “खूब खाती हूं, फिर भी वजन घट रहा है” – यह उन प्रमुख संकेतों में से एक है जिनसे महिलाओं में थायराइड की समस्याएं, खासकर हाइपरथायरायडिज्म, पकड़ी जाती हैं।
इसका सबसे आम कारण ग्रेव्स रोग नाम की ऑटोइम्यून बीमारी है। इसमें शरीर एंटीबॉडी बनाता है जो थायराइड को लगातार ज्यादा काम करने के लिए उकसाते रहते हैं। कुछ मामलों में थायराइड नोड्यूल भी अतिरिक्त हार्मोन बनाने लगते हैं या थायरायडाइटिस के कारण कुछ समय के लिए हार्मोन खून में ज्यादा मात्रा में निकल आते हैं।
हाइपरथायरायडिज्म के लक्षणों में शामिल हो सकते हैं:
- बिना कोशिश के वजन घटना
- दिल की तेज या अनियमित धड़कन
- अत्यधिक पसीना और सामान्य से ज्यादा गर्मी लगना
- हाथों में कंपकंपी
- नींद न आना, बेचैनी और घबराहट
- चिड़चिड़ापन और मूड में तेज बदलाव
- कई महिलाओं में पीरियड्स का हल्का हो जाना या कम बार आना
अगर कारण ग्रेव्स रोग हो, तो आंखें उभर कर दिखना, आंखों में जलन या डबल दिखना जैसी खास दिक्कतें भी हो सकती हैं, जिसे ग्रेव्स ऑप्थल्मोपैथी कहा जाता है।
हाइपरथायरायडिज्म की पहचान के लिए TSH, T3 और T4 की जांच की जाती है। आम तौर पर TSH बहुत कम और T3‑T4 ऊंचे पाए जाते हैं। जरूरत पड़ने पर थायराइड स्कैन या रेडियोएक्टिव आयोडीन अपटेक टेस्ट भी कराया जाता है। इलाज के विकल्पों में एंटी‑थायराइड दवाएं (जैसे मेथिमेजोल, प्रोपाइलथायोरासिल), रेडियोधर्मी आयोडीन थेरेपी और सर्जरी शामिल हैं। किस रोगी को कौन सा विकल्प देना है, यह उम्र, गर्भावस्था, नोड्यूल की स्थिति और अन्य बीमारियों को देखकर तय किया जाता है।
राज हॉस्पिटल्स में हाइपरथायरायडिज्म के लिए सभी तरह के विकल्प उपलब्ध हैं। दवा से लेकर रेडियोआयोडीन और जरूरत पड़ने पर थायरॉयडेक्टॉमी तक, हर इलाज अनुभवी विशेषज्ञों की निगरानी में किया जाता है। साथ‑साथ दिल की धड़कन, हड्डियों की मजबूती और आंखों की स्थिति की भी नियमित जांच की जाती है, ताकि महिलाओं में थायराइड की समस्याएं एक पहलू तक सीमित न रहकर पूरे स्वास्थ्य के संदर्भ में देखी जा सकें।
हाशिमोटो रोग (Hashimoto’s Disease)
हाशिमोटो रोग वह ऑटोइम्यून स्थिति है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली लगातार थायराइड की कोशिकाओं पर हमला करती रहती है। धीरे‑धीरे ये कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं और ग्रंथि कमजोर पड़ जाती है। यही कारण है कि यह हाइपोथायरायडिज्म का सबसे आम कारण माना जाता है और महिलाओं में थायराइड की समस्याएं, खासकर मध्यम आयु (30–50 वर्ष) में, अक्सर इसी से जुड़ी होती हैं।
इस रोग में शुरुआत में थायराइड सामान्य या थोड़ा बड़ा भी लग सकता है, लेकिन समय के साथ हार्मोन उत्पादन घटने लगता है। परिवार में ऑटोइम्यून रोग या थायराइड की समस्या होने पर जोखिम और बढ़ जाता है। जांच के लिए TSH और T4 के साथ‑साथ थायराइड एंटीबॉडी, खासकर TPO और थायग्लोब्युलिन एंटीबॉडी की जांच की जाती है, जो हाशिमोटो की पुष्टि करने में मदद करती है।
उपचार में मुख्य भूमिका थायराइड हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी की होती है, जो अधिकतर मामलों में लंबे समय तक चलती है। राज हॉस्पिटल्स में एंडोक्रिनोलॉजिस्ट नियमित अंतराल पर खून की जांच करवाकर खुराक एडजस्ट करते हैं, ताकि महिलाओं में थायराइड की समस्याएं स्थिर रहें और ऊर्जा, वजन तथा प्रजनन स्वास्थ्य संतुलित बना रहे।
थायराइड नोड्यूल (Thyroid Nodules)
थायराइड नोड्यूल का मतलब है थायराइड ग्रंथि के अंदर एक या अधिक गांठों का बन जाना। ये गांठें ठोस भी हो सकती हैं और तरल पदार्थ से भरी सिस्ट के रूप में भी। 60 वर्ष की उम्र तक लगभग आधे लोगों में किसी न किसी रूप में नोड्यूल पाए जा सकते हैं, इसलिए महिलाओं में थायराइड की समस्याएं जांचते समय नोड्यूल का मिलना बहुत आम बात है।
अधिकतर नोड्यूल इतने छोटे होते हैं कि व्यक्ति को कोई लक्षण महसूस ही नहीं होता। कई बार ये किसी दूसरी जांच, जैसे गर्दन के अल्ट्रासाउंड या CT स्कैन के दौरान अचानक दिख जाते हैं। बड़े नोड्यूल होने पर गर्दन के आगे सूजन दिख सकती है, गला भारी महसूस हो सकता है या निगलते समय हल्की रुकावट जैसा अहसास हो सकता है।
ज्यादातर यानी लगभग 90–95% थायराइड नोड्यूल सौम्य होते हैं और कैंसर नहीं बनते, फिर भी उनकी सही जांच जरूरी होती है। राज हॉस्पिटल्स में थायराइड अल्ट्रासाउंड, TSH व अन्य हार्मोन टेस्ट और जरूरत पड़ने पर फाइन‑नीडल एस्पिरेशन (FNA) बायोप्सी की सुविधा उपलब्ध है। FNA में पतली सुई से नोड्यूल का थोड़ा सा सैंपल लेकर माइक्रोस्कोप से जांच की जाती है, जिससे लगभग बिना दर्द, कम समय में यह अंदाजा हो जाता है कि गांठ सौम्य है या नहीं।
थायराइड कैंसर और सर्जिकल हस्तक्षेप
थायराइड नोड्यूल की कुल संख्या की तुलना में कैंसर के मामले कम होते हैं, लगभग 5–10% तक। फिर भी महिलाओं में थायराइड की समस्याएं देखते समय कैंसर की संभावना को सही ढंग से आंकना जरूरी है, क्योंकि शुरुआती अवस्था में पकड़े गए ज्यादातर थायराइड कैंसर का इलाज अच्छी तरह हो जाता है।
थायराइड कैंसर के मुख्य प्रकार हैं:
- पैपिलरी कैंसर
- फॉलिक्यूलर कैंसर
- मेडुलरी कैंसर
- एनाप्लास्टिक कैंसर
इनमें से पैपिलरी और फॉलिक्यूलर प्रकार आमतौर पर धीरे‑धीरे बढ़ते हैं और सही समय पर सर्जरी कर देने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। निदान के लिए अल्ट्रासाउंड, FNA बायोप्सी, कभी‑कभी CT/MRI और खास खून की जांचें की जाती हैं।
इलाज में मुख्य भूमिका सर्जरी की होती है। छोटे और सीमित कैंसर के लिए सिर्फ थायराइड लोबेक्टोमी की जाती है, जिसमें ग्रंथि का आधा हिस्सा हटाया जाता है। बड़े या फैले हुए कैंसर के लिए टोटल थायरॉयडेक्टॉमी की जाती है, जिसमें पूरी ग्रंथि और जरूरत पड़ने पर आसपास के लिम्फ नोड्स भी निकाल दिए जाते हैं। सर्जरी के बाद हार्मोन रिप्लेसमेंट दवा दी जाती है और नियमित फॉलो‑अप रखे जाते हैं।
राज हॉस्पिटल्स में अनुभवी सर्जिकल टीम, आधुनिक मॉड्यूलर OT और इमरजेंसी के लिए रूफटॉप हेलिपैड जैसी सुविधाएं मौजूद हैं, जिससे गंभीर मरीज भी समय पर उपचार तक पहुंच पाते हैं। इससे महिलाओं में थायराइड की समस्याएं, चाहे सामान्य हों या कैंसर से जुड़ी, दोनों के लिए एक भरोसेमंद उपचार केंद्र मिल जाता है।
महिलाओं में थायराइड के शुरुआती लक्षणों को कैसे पहचानें?

थायराइड विकार की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इसके शुरुआती संकेत बहुत हल्के और धुंधले होते हैं। अक्सर इन्हें सामान्य थकान, काम का बोझ, तनाव या उम्र बढ़ने का असर मानकर टाल दिया जाता है। खासकर महिलाओं में थायराइड की समस्याएं रजोनिवृत्ति, PCOS, एनीमिया या डिप्रेशन के लक्षणों से मिलती‑जुलती होने के कारण और भी छिप जाती हैं।
शुरुआती पहचान इसलिए जरूरी है, क्योंकि सही समय पर जांच हो जाए तो दवा से हार्मोन संतुलित किया जा सकता है और दिल, हड्डियों, प्रजनन क्षमता व गर्भावस्था पर पड़ने वाले बड़े असर से बचा जा सकता है। लगातार बदलते thyroid symptoms को ध्यान से समझना ही पहला कदम है।
हाइपोथायरायडिज्म के प्रारंभिक संकेत
हाइपोथायरायडिज्म में शरीर की गति धीमी हो जाती है, इसलिए पहले‑पहले जो बदलाव दिखते हैं, वे थकान और सुस्ती से जुड़े होते हैं।
- जब रोज का काम करते‑करते जल्दी थकान होने लगे, आराम करने पर भी स्फूर्ति महसूस न हो और सुबह उठने में बहुत आलस लगे, तो इसे सिर्फ “कमजोरी” मानकर अनदेखा नहीं करना चाहिए। यह धीरे‑धीरे बढ़ता हुआ थायराइड असंतुलन हो सकता है।
- बिना ज्यादा मीठा या तला‑भुना खाए भी अगर कपड़ों का साइज बढ़ने लगे, वजन मशीन पर धीरे‑धीरे अंक ऊपर जाते दिखें, तो यह चयापचय के धीमे होने का संकेत हो सकता है। महिलाओं में थायराइड की समस्याएं अक्सर ऐसे वजन बढ़ने के रूप में सामने आती हैं।
- ठंड मौसम से ज्यादा लगने लगे, हाथ‑पांव ठंडे रहें, त्वचा रूखी और खुरदुरी हो जाए, होंठ फटने लगें और बाल ज्यादा टूटने लगें, तो यह भी हाइपोथायरायडिज्म के शुरुआती संकेत हो सकते हैं।
इसके अलावा कब्ज, मांसपेशियों में जकड़न या दर्द, हल्का अवसाद, बात करते समय ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, चीजें बार‑बार भूल जाना और पीरियड्स का ज्यादा भारी या अनियमित होना भी उन संकेतों में शामिल हैं, जिन पर ध्यान देना जरूरी है।
हाइपरथायरायडिज्म के प्रारंभिक संकेत
हाइपरथायरायडिज्म में शरीर जरूरत से ज्यादा तेज चलने लगता है, इसलिए शुरुआती संकेत भी तेज चयापचय से जुड़े होते हैं।
- अच्छी भूख रहने के बावजूद अगर कुछ महीनों में वजन noticeably कम हो जाए, कपड़े ढीले पड़ने लगें और चेहरे की गोलाई घट जाए, तो इसे सिर्फ “डाइट ठीक हो गई” मानना सही नहीं होगा। यह थायराइड हार्मोन के अधिक बनने की ओर इशारा कर सकता है।
- दिल की धड़कन का अचानक तेज हो जाना, थोड़ी सी सीढ़ियां चढ़ने पर धक‑धक महसूस होना या बिना वजह घबराहट लगना भी हाइपरथायरायडिज्म के शुरूआती संकेत हो सकते हैं। कई महिलाएं इसे केवल Anxiety समझकर नजरअंदाज कर देती हैं।
- बहुत ज्यादा पसीना आना, हल्की गर्मी में भी बेचैनी महसूस होना, हाथों में हल्की सी कंपकंपी, नींद का बार‑बार टूटना या देर रात तक नींद न आना भी ध्यान देने योग्य हैं। साथ ही, पीरियड्स का हल्का हो जाना या ज्यादा गैप से आना भी इस स्थिति से जुड़ा हो सकता है।
सामान्य चेतावनी संकेत में गर्दन के आगे सूजन या गांठ महसूस होना, अचानक आवाज बैठ जाना या भारी हो जाना, निगलने में हल्की परेशानी, कई तरह के लक्षणों का एक साथ होना शामिल है। अगर ऐसे संकेत कुछ हफ्तों से ज्यादा समय तक बने रहें, तो खुद से दवा लेने की बजाय डॉक्टर से मिलकर थायराइड की जांच कराना समझदारी होगी।
Are You Noticing Symptoms of Thyroid Problems in Women?
Unexplained weight changes, fatigue, hair fall, mood swings, and irregular periods can be early signs of thyroid issues. Early diagnosis and treatment can prevent complications. Raj Hospital Ranchi offers advanced thyroid testing and personalized treatment options.
Consult Our Thyroid Specialist Todayथायराइड परीक्षण और निदान प्रक्रिया

थायराइड की सही पहचान सिर्फ लक्षणों से करना मुश्किल होता है, क्योंकि ये कई अन्य बीमारियों से मिलते‑जुलते हैं। इसलिए महिलाओं में थायराइड की समस्याएं समझने के लिए व्यवस्थित जांच प्रक्रिया जरूरी होती है। इसमें डॉक्टर द्वारा पूछे गए सवाल, शारीरिक परीक्षण, खून की जांच, अल्ट्रासाउंड और जरूरत पड़ने पर बायोप्सी शामिल हो सकते हैं।
राज हॉस्पिटल्स में थायराइड निदान के लिए आधुनिक लैब, उच्च गुणवत्ता वाले अल्ट्रासाउंड मशीन और अनुभवी एंडोक्रिनोलॉजिस्ट उपलब्ध हैं। रांची और आसपास के मरीजों के लिए यह फायदा है कि Thyroid Problems in Women की जांच से लेकर इलाज तक सब कुछ एक ही स्थान पर हो सकता है, जिससे समय और खर्च दोनों की बचत होती है।
“रूटीन ब्लड टेस्ट से ही ज़्यादातर थायराइड विकार की पहचान हो जाती है।” – इंडियन थायराइड सोसाइटी के दिशा‑निर्देश
चिकित्सकीय मूल्यांकन
सबसे पहले डॉक्टर विस्तृत चिकित्सा इतिहास लेते हैं। इसमें वे यह समझने की कोशिश करते हैं कि थकान, वजन में बदलाव, मूड, पीरियड्स, नींद या दिल की धड़कन से जुड़े लक्षण कब से चल रहे हैं और कितने गंभीर हैं। परिवार में थायराइड या अन्य ऑटोइम्यून रोग का इतिहास भी खास तौर पर पूछा जाता है, क्योंकि इससे महिलाओं में थायराइड की समस्याएं होने का जोखिम बढ़ सकता है।
इसके बाद शारीरिक परीक्षण किया जाता है। डॉक्टर गर्दन के आगे वाले हिस्से को हल्के से छूकर देखते हैं कि थायराइड ग्रंथि का आकार सामान्य है या नहीं, कहीं गांठ तो महसूस नहीं हो रही। साथ ही वे त्वचा, बाल, वजन, दिल की धड़कन, रक्तचाप और रिफ्लेक्स जैसी चीजों की भी जांच करते हैं, जो थायराइड हार्मोन से प्रभावित होती हैं।
रक्त परीक्षण (Lab Tests)
थायराइड विकारों की पुष्टि के लिए खून की जांच सबसे भरोसेमंद तरीका मानी जाती है।
TSH टेस्ट इस पूरी प्रक्रिया का केंद्र होता है। यह पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा बनने वाला हार्मोन है, जो थायराइड को काम करने का संकेत देता है। TSH ज्यादा हो तो आमतौर पर हाइपोथायरायडिज्म और बहुत कम हो तो हाइपरथायरायडिज्म की संभावना बढ़ जाती है। फ्री T4 और कभी‑कभी टोटल T4 की जांच करके यह देखा जाता है कि खून में असली थायराइड हार्मोन का स्तर कितना है।
हाइपरथायरायडिज्म के मामलों में अक्सर फ्री T3 की जांच भी की जाती है, क्योंकि कई बार T3 ज्यादा बढ़ जाता है जबकि T4 में हल्का ही बदलाव दिखता है। ऑटोइम्यून कारणों की पुष्टि के लिए TPO एंटीबॉडी, थायग्लोब्युलिन एंटीबॉडी और TSI जैसे थायराइड एंटीबॉडी टेस्ट किए जाते हैं। ये हाशिमोटो रोग और ग्रेव्स रोग जैसे विकारों की पहचान में मदद करते हैं।
मुख्य खून की जांचें संक्षेप में:
- TSH टेस्ट – थायराइड की समग्र गतिविधि समझने के लिए
- फ्री T4 / टोटल T4 – शरीर में उपलब्ध थायरोक्सिन स्तर जानने के लिए
- फ्री T3 – तेज चयापचय या हाइपरथायरायडिज्म की स्थिति में खास उपयोगी
- थायराइड एंटीबॉडी (TPO, थायग्लोब्युलिन, TSI) – ऑटोइम्यून थायराइड रोगों की पुष्टि के लिए
राज हॉस्पिटल्स की NABL मान्यता प्राप्त लैब में ये सभी टेस्ट आधुनिक तकनीक से किए जाते हैं, जिससे परिणाम जल्दी और अधिक सटीक मिलते हैं। इससे महिलाओं में थायराइड की समस्याएं तुरंत पहचानकर इलाज शुरू किया जा सकता है।
इमेजिंग परीक्षण
जब डॉक्टर को थायराइड के आकार या नोड्यूल की संभावना लगती है, तो वे अल्ट्रासाउंड या अन्य इमेजिंग जांच लिखते हैं।
थायराइड अल्ट्रासाउंड एक सरल, बिना दर्द और बिना रेडिएशन वाला परीक्षण है। इसमें एक छोटी सी प्रोब गर्दन पर घुमाकर स्क्रीन पर थायराइड ग्रंथि की तस्वीर देखी जाती है। इससे ग्रंथि का आकार, संरचना, किसी गांठ की मौजूदगी, उसकी संख्या, आकार और वह ठोस है या सिस्टिक – यह सब जानकारी मिलती है। संदिग्ध नोड्यूल की पहचान में यह जांच बहुत मददगार होती है।
कुछ मामलों में रेडियोएक्टिव आयोडीन अपटेक टेस्ट या थायराइड स्कैन की जरूरत पड़ती है। इसमें थोड़ी मात्रा में रेडियोधर्मी आयोडीन देकर यह देखा जाता है कि थायराइड इसे किस तरह सोख रहा है। इससे यह पता लगाने में मदद मिलती है कि हाइपरथायरायडिज्म का कारण कौन‑सी समस्या है और कोई नोड्यूल “हॉट” है या “कोल्ड”।
बायोप्सी और अन्य परीक्षण
जब अल्ट्रासाउंड में कोई नोड्यूल संदिग्ध दिखता है, तो डॉक्टर फाइन‑नीडल एस्पिरेशन (FNA) बायोप्सी की सलाह दे सकते हैं। इस प्रक्रिया में स्थानीय सुन्न करने वाली दवा लगाने के बाद पतली सुई से नोड्यूल से थोड़ा सा ऊतक या तरल निकाला जाता है, जिसे लैब में माइक्रोस्कोप से जांचा जाता है। यह प्रक्रिया आमतौर पर कुछ ही मिनट में पूरी हो जाती है और दर्द बहुत कम होता है।
राज हॉस्पिटल्स में अल्ट्रासाउंड‑गाइडेड FNA बायोप्सी की सुविधा है, जिससे सुई ठीक उसी जगह लगाई जाती है जहां से सैंपल लेना जरूरी होता है। इससे थायराइड कैंसर की संभावना की सही जांच हो पाती है और महिलाओं में थायराइड की समस्याएं इलाज की अगली योजना के साथ स्पष्ट रूप से सामने आ जाती हैं।
निष्कर्ष
महिलाओं में थायराइड की समस्याएं आम होने के बावजूद अक्सर देर से पकड़ी जाती हैं, क्योंकि इनके शुरुआती संकेत बहुत साधारण लगते हैं। थकान, वजन में बदलाव, मूड स्विंग, बाल झड़ना या पीरियड्स का गड़बड़ होना जैसी बातें रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा मान ली जाती हैं, जबकि कई बार यही शरीर का तरीका होता है यह बताने का कि थायराइड हार्मोन असंतुलित हो चुके हैं।
अगर समय पर TSH, T3, T4 जैसे साधारण खून की जांच करा ली जाए, तो हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म दोनों का निदान जल्दी हो सकता है। दवाओं, जीवनशैली में थोड़े बदलाव और जरूरत पड़ने पर सर्जरी के सहारे अधिकतर मरीज सामान्य, सक्रिय और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। खासकर गर्भधारण की योजना बना रही महिलाओं, नई मांओं और रजोनिवृत्ति के आसपास की आयु वर्ग के लिए यह और भी महत्वपूर्ण है कि वे अपने थायराइड स्तर के बारे में जागरूक रहें।
रांची और आसपास रहने वालों के लिए राज हॉस्पिटल्स एक भरोसेमंद विकल्प है, जहां महिलाओं में थायराइड की समस्याएं एंडोक्रिनोलॉजिस्ट, स्त्री रोग विशेषज्ञ, सर्जन और डायटिशियन की मल्टी‑डिसिप्लिनरी टीम मिलकर देखती है। एक ही स्थान पर उन्नत डायग्नोस्टिक लैब, अल्ट्रासाउंड, FNA बायोप्सी, ऑपरेशन थिएटर और किफायती इलाज उपलब्ध होने से मरीज और परिवार दोनों का बोझ कम होता है।
अगर पिछले कुछ महीनों से ऊपर बताए गए किसी भी thyroid symptoms का अनुभव हो रहा है, तो अगली बार इसे टालने के बजाय विशेषज्ञ से मिलकर जांच कराना बेहतर होगा। समय पर उठाया गया यह छोटा कदम आगे चलकर दिल, हड्डियों, दिमाग और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी बड़ी दिक्कतों से बचा सकता है।
Are You Noticing Symptoms of Thyroid Problems in Women?
Unexplained weight changes, fatigue, hair fall, mood swings, and irregular periods can be early signs of thyroid issues. Early diagnosis and treatment can prevent complications. Raj Hospital Ranchi offers advanced thyroid testing and personalized treatment options.
Consult Our Thyroid Specialist Todayमहिलाओं को थायराइड की जांच कितनी बार करानी चाहिए?
अगर परिवार में थायराइड का इतिहास है, वजन या ऊर्जा स्तर में अचानक बदलाव दिख रहा है, पीरियड्स अनियमित हैं या गर्भधारण की योजना है, तो एक बार बेसलाइन थायराइड प्रोफाइल जरूर कराना चाहिए। सामान्य रिपोर्ट आने पर भी 1–2 साल में एक बार रूटीन जांच कराना फायदेमंद रहता है, खासकर 30 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए। गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर की सलाह के अनुसार हर तिमाही में जांच की जा सकती है।
क्या थायराइड की बीमारी पूरी तरह ठीक हो सकती है?
कई थायराइड विकार, जैसे आयोडीन की कमी से होने वाली समस्याएं या थायरायडाइटिस के कुछ मामले, समय के साथ सामान्य हो सकते हैं। हाशिमोटो या ग्रेव्स जैसे ऑटोइम्यून रोगों में आमतौर पर दवा से हार्मोन स्तर नियंत्रित रखा जाता है और मरीज सामान्य जीवन जी सकता है। थायराइड कैंसर के शुरुआती मामलों में सर्जरी और आगे के इलाज के बाद लंबे समय तक रोग‑मुक्त रहना संभव है।
क्या थायराइड की दवा जीवन भर लेनी पड़ती है?
यह पूरी तरह इस बात पर निर्भर करता है कि महिलाओं में थायराइड की समस्याएं किस वजह से हुई हैं। अगर थायराइड ग्रंथि का बड़ा हिस्सा सर्जरी में निकाला जा चुका है या हाशिमोटो से ग्रंथि कमजोर हो चुकी है, तो दवा लंबे समय तक चल सकती है। वहीं कुछ हल्के या अस्थायी मामलों में डॉक्टर समय‑समय पर खुराक कम करके दवा बंद करने की कोशिश भी कर सकते हैं। इसलिए दवा खुद से बंद करने की बजाय हमेशा डॉक्टर की सलाह माननी चाहिए।
राज हॉस्पिटल्स में थायराइड के इलाज के लिए किस डॉक्टर से मिलना चाहिए?
राज हॉस्पिटल्स में Thyroid Problems in Women के लिए सबसे पहले एंडोक्रिनोलॉजिस्ट या इंटरनल मेडिसिन विशेषज्ञ से परामर्श लिया जा सकता है। अगर समस्या प्रजनन स्वास्थ्य या गर्भावस्था से जुड़ी हो, तो स्त्री रोग विशेषज्ञ भी टीम का हिस्सा बनते हैं। नोड्यूल या कैंसर की स्थिति में ईएनटी या जनरल सर्जन थायराइड सर्जरी की योजना बनाते हैं। एक ही छत के नीचे सभी विशेषज्ञ मौजूद होने से जांच, सलाह और इलाज की पूरी प्रक्रिया सुगम हो जाती है।









