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गैस से पीठ दर्द: रांची की जीवनशैली और खान-पान का असर

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पीठ में हल्का दर्द हो और साथ में पेट भरा–भरा लगे, तो ज़्यादातर लोग मान लेते हैं कि वजह सिर्फ़ भारी काम या गलत बैठना है। बहुत कम लोग सोचते हैं कि यही दर्द गैस से भी जुड़ा हो सकता है। कई मरीज़ जब राज हॉस्पिटल्स, रांची पहुंचते हैं, तो उनका पहला सवाल यही होता है – क्या सच में गैस से पीठ में दर्द हो सकता है, या यह कोई और बीमारी का संकेत है।

रांची और झारखंड के खाने में तेल, मसाले, तला-भुना और तेज मिर्च आम बात है। दाल–भात के साथ तली हुई सब्ज़ियां, पराठे, लिट्टी–चोखा, पीठा, पकौड़ी, चाउमीन, मोमोज़ जैसी चीज़ें अब रोज़मर्रा का हिस्सा बन चुकी हैं। ऊपर से देर रात खाना, सुबह नाश्ता छोड़ देना और दिन भर चाय–बिस्किट पर गुज़ारा – ये सब पाचन तंत्र पर सीधा असर डालते हैं और गैस, एसिडिटी व पेट फूलने की समस्या बढ़ाते हैं, जो आगे चलकर पीठ में दर्द दे सकती है।

पाचन तंत्र पेट के अंदर ठीक उसी जगह होता है, जिसके पीछे कमर की हड्डी और मांसपेशियां रहती हैं। जब आंतों में ज़्यादा गैस भर जाती है या सूजन आ जाती है, तो यह दबाव पीछे की तरफ़ भी महसूस हो सकता है। इसी वजह से कई बार असली समस्या पेट में होती है, लेकिन दर्द पीठ में महसूस होता है। राज हॉस्पिटल्स पिछले 27+ वर्षों से रांची में ऐसे ही पाचन संबंधी मामलों का इलाज कर रहा है और हर उम्र के मरीज़ों में इस तरह का गैस से जुड़ा पीठ दर्द अक्सर देखता है।

आगे के हिस्सों में यह समझने में मदद मिलेगी कि गैस पीठ दर्द का कारण कैसे बनती है, रांची की जीवनशैली और खान-पान में कौन सी आदतें इस समस्या को बढ़ाती हैं, कौन से लक्षण बताने लगते हैं कि दर्द सिर्फ़ गैस से नहीं है, और कौन से घरेलू उपाय व जीवनशैली में बदलाव राहत दे सकते हैं। साथ ही यह भी देखा जाएगा कि कब देर किए बिना डॉक्टर के पास जाना ज़रूरी है और राज हॉस्पिटल्स इसमें कैसे मदद कर सकता है।

Table of Contents

गैस और पीठ दर्द के बीच का संबंध – चिकित्सीय दृष्टिकोण

Anatomical view showing digestive organs and spine connection

गैस का मतलब सिर्फ़ डकार आना या पेट फूलना नहीं होता, यह पूरे पेट की गुहा के अंदर दबाव को बदल देता है। हमारा पेट, छोटी–बड़ी आंत, अग्न्याशय और अन्य अंग एक सीमित जगह में भरे रहते हैं और ठीक इसके पीछे रीढ़ की हड्डी तथा उसकी मांसपेशियां होती हैं। जब आंतों में ज़्यादा गैस जमा होती है, तो ये अंग आगे की तरफ़ फूलते हैं और उनके चारों तरफ़ की झिल्लियों व नसों पर खिंचाव पड़ने लगता है। यही खिंचाव पीछे की तरफ़ पीठ तक दर्द के रूप में पहुंच सकता है।

चिकित्सा भाषा में इसे कई बार रेफर्ड पेन यानी विकीर्ण दर्द कहा जाता है। मतलब, समस्या पाचन तंत्र के किसी हिस्से में होती है, लेकिन दर्द किसी और हिस्से में महसूस होता है। उदाहरण के लिए:

  • पेट के ऊपरी हिस्से में ज़्यादा एसिडिटी हो तो छाती के बीच या कंधों के बीच वाली पीठ में जलन जैसा दर्द महसूस हो सकता है।
  • निचली आंतों में गैस और सूजन हो तो कमर के निचले हिस्से में भारीपन और दबाव जैसा दर्द आ सकता है।

तंत्रिका तंत्र भी इस संबंध में बड़ी भूमिका निभाता है। पेट और पीठ दोनों की नसें रीढ़ की हड्डी से ही निकलती हैं, इसलिए दिमाग के लिए इनके सिग्नल कई बार आपस में मिल–जुल जाते हैं। तब पेट की नसों से आया सिग्नल दिमाग को पीठ से आया दर्द जैसा महसूस हो सकता है। इसी कारण कई मरीज़ गैस से जुड़े दर्द को साधारण कमरदर्द समझकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

“कई मरीज़ हमारे पास सिर्फ़ कमरदर्द की शिकायत लेकर आते हैं, जांच में ज़्यादातर बार आंतों में गैस या सूजन कारण के रूप में सामने आती है।”
राज हॉस्पिटल्स गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी टीम

राज हॉस्पिटल्स के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी विभाग में ऐसे मामलों के लिए आधुनिक जांचें की जाती हैं, जैसे एंडोस्कोपी, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, पीएच मॉनिटरिंग और ज़रूरत पड़ने पर मैनोमेट्री। इन जांचों से यह समझने में मदद मिलती है कि दर्द की जड़ पाचन तंत्र में है या रीढ़ की हड्डी, मांसपेशियों या किसी अन्य अंग में। सही कारण पता चलना ही सही इलाज की पहली सीढ़ी है।

क्या आप गैस या पेट फूलने से पीठ दर्द महसूस कर रहे हैं?

लगातार गैस, पेट में भारीपन, बीच-बीच में उठने वाला पीठ दर्द, भूख न लगना या एसिडिटी – ये पाचन संबंधी समस्या के संकेत हो सकते हैं। देर करने से दर्द बढ़ सकता है। रांची के Raj Hospital में विशेषज्ञ गैस्ट्रो और मेडिसिन टीम उन्नत जांच और सुरक्षित इलाज प्रदान करती है।

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गैस से पीठ दर्द होने के मुख्य कारण और तंत्र

जब कोई मरीज़ पूछता है कि क्या गैस से पीठ में दर्द हो सकता है, तो डॉक्टर सिर्फ़ “हां” कहकर नहीं रुकते, बल्कि यह भी बताते हैं कि इसके पीछे अलग–अलग शारीरिक प्रक्रियाएं कैसे काम करती हैं। हर व्यक्ति में इन कारणों का मिश्रण अलग हो सकता है, लेकिन कुछ मुख्य तंत्र लगभग सभी में समान रहते हैं:

  1. पेट का बढ़ा हुआ दबाव और सूजन
    जब बड़ी या छोटी आंत में गैस ज़्यादा मात्रा में फंस जाती है, तो वे गुब्बारे की तरह फूलने लगती हैं। इस सूजन से पेट के अंदर की जगह कम हो जाती है और अंगों के आसपास की झिल्लियों पर खिंचाव पड़ने लगता है। यही खिंचाव पीछे की ओर कमर और पीठ की मांसपेशियों तक पहुंचकर दर्द, भारीपन या जकड़न की भावना दे सकता है। लंबे समय तक ऐसा दबाव रहे तो मांसपेशियां थकावट महसूस करती हैं और हल्की–हल्की टीस बनी रह सकती है।
  2. ऊपरी हिस्से की गैस और GERD
    ऊपर के हिस्से, यानी घेघा और पेट के जंक्शन से जुड़ी समस्या GERD (गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिज़ीज) है। जब यह होता है, तो पेट का एसिड और गैस बार–बार ऊपर भोजन नली में लौट आते हैं। इसके कारण:
    • सीने में जलन
    • खट्टी डकार
    • गले में कफ और आवाज़ भारी होना
    • छाती के पीछे और कंधों के बीच की पीठ में जलन या दर्द
      जैसे लक्षण दिख सकते हैं। कई बार यह दर्द दिल के दर्द जैसा भी लग सकता है, इसलिए समय पर जांच ज़रूरी हो जाती है।
  3. बढ़ी हुई एसिडिटी और सूजन का समग्र असर
    लंबे समय तक तीखी चीज़ें, ज़्यादा चाय–कॉफी, धूम्रपान या शराब से पेट में सूजन रहती है। यह सूजन वाला माहौल जोड़ों और मांसपेशियों तक भी असर डाल सकता है। ऐसी स्थिति में केवल गैस ही नहीं, बल्कि मांसपेशियों की जकड़न, थकान और पीठ में दर्द भी साथ–साथ रहने लगते हैं। कई वरिष्ठ नागरिकों में एसिडिटी और गठिया दोनों मिलकर पीठ के दर्द को और बढ़ा देते हैं।
  4. तंत्रिका पर सीधा दबाव (कम लेकिन महत्वपूर्ण कारण)
    कुछ दुर्लभ मामलों में रीढ़ की हड्डी के पास गैस युक्त श्लेष पुटिकाएं यानी गैस से भरे छोटे–छोटे सिस्ट बन सकते हैं। ये नसों के रास्ते में आकर उन्हें दबा दें, तो कमर से होते हुए पैरों तक जाने वाला दर्द, झुनझुनी या कमजोरी महसूस हो सकती है। ऐसे मामलों में केवल गैस की दवा काफी नहीं होती, बल्कि विशेष जांच और कभी–कभी सर्जरी की आवश्यकता भी पड़ सकती है।

राज हॉस्पिटल्स की टीम ने रांची के मरीज़ों में यह देखा है कि ज़्यादातर मामलों में कई कारण एक साथ मौजूद रहते हैं – जैसे लंबे समय से एसिडिटी, साथ में गलत पोस्चर और थोड़ा गठिया – तीनों मिलकर कमरदर्द को लगातार बनाए रखते हैं। इसलिए यहां इलाज सिर्फ़ एक दवा तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरा चित्र समझकर समग्र योजना बनाई जाती है।

रांची की जीवनशैली और खान-पान – पाचन संबंधी समस्याओं के प्रमुख कारक

Traditional Indian thali with oily fried foods

क्या गैस से पीठ में दर्द हो सकता है, यह सवाल रांची में और भी प्रासंगिक हो जाता है, क्योंकि यहां की जीवनशैली और खान-पान खुद पाचन पर गहरा असर डालते हैं। झारखंड के पारंपरिक व्यंजनों में स्वाद भरपूर होता है, लेकिन अक्सर तेल, घी और मसाले भी भरपूर होते हैं। अगर पेट संवेदनशील हो, या खाने का समय अनियमित हो, तो यही स्वादिष्ट प्लेट आगे चलकर गैस और पीठ दर्द की वजह बन सकती है।

दाल–भात के साथ आलू भुजिया, तली सब्ज़ियां और घी से भरे पराठे घर–घर में आम हैं। लिट्टी–चोखा में भुना आटा, मसाले और घी का अच्छा मेल होता है, जो कई लोगों के लिए पोषण दे सकता है, लेकिन देर रात या बहुत ज़्यादा मात्रा में खाने पर यह भारी भी पड़ सकता है। सर्दियों में पीठा, तिलकुट और गुड़ वाली मिठाइयां ज़्यादा खा ली जाएं, तो कुछ लोगों में गैस, एसिडिटी और पेट फूलने की शिकायत बढ़ जाती है, जिससे कमर के आसपास दर्द या खिंचाव महसूस हो सकता है।

सिर्फ़ पारंपरिक खाने ही नहीं, बदलती जीवनशैली ने फास्ट फूड को भी बहुत बढ़ा दिया है। कॉलेज जाने वाले युवाओं और दफ्तर में काम करने वाले लोगों के लिए चाउमीन, मोमोज़, समोसा, रोल और बर्गर लंच का आसान विकल्प बन गए हैं। यह खाना तला–भुना, मैदा और मसालों से भरपूर होता है, जो पचने में समय लेता है और आंतों में ज़्यादा गैस बना सकता है। यदि साथ में कार्बोनेटेड ड्रिंक्स यानी कोल्ड ड्रिंक या सोडा भी हो, तो गैस और सूजन और बढ़ जाती है।

रांची की जलवायु भी असर डालती है:

  • गर्मी में पसीना ज़्यादा, लेकिन पानी कम – कब्ज़ और गैस बढ़ने का जोखिम।
  • सर्दियों में कम पानी और ज़्यादा गरम व भारी भोजन – पाचन धीमा पड़ जाता है।

शारीरिक गतिविधि की कमी भी समस्या को बढ़ाती है। आईटी, बैंकिंग, कॉल सेंटर या कार्यालयी काम में दिन भर कुर्सी पर बैठना, घर लौटकर मोबाइल–टीवी पर समय बिताना – इससे शरीर की प्राकृतिक हलचल कम होती है। पाचन तंत्र को सक्रिय रखने के लिए हल्का चलना, सीढ़ियां चढ़ना या कोई भी शारीरिक गतिविधि ज़रूरी है, वरना गैस और कब्ज़ की समस्या आम हो जाती है।

बेहतर समझ के लिए इसे एक सरल सारणी से देख सकते हैं:

आम खाने की आदतपाचन पर असरगैस व पीठ दर्द पर संभावित प्रभाव
देर रात भारी तला–भुना खानापाचन धीमा, एसिडिटी बढ़ती हैपेट फूलना, रात में कमरदर्द या पीठ में जकड़न
दिन भर चाय–बिस्किट पर गुज़ारापोषण कम, एसिडिटी ज़्यादागैस, कमजोरी और पीठ के दर्द का मिश्रण
फास्ट फूड के साथ कोल्ड ड्रिंकज़्यादा गैस और सूजनपेट में दबाव बढ़कर कमर में खिंचाव जैसा दर्द
कम पानी, कम फाइबरकब्ज़ और कठोर मलआंतों में दबाव बढ़कर पीठ के निचले हिस्से में दर्द

राज हॉस्पिटल्स के डॉक्टरों ने रांची और आसपास के इलाकों के मरीज़ों में लगातार यह पैटर्न देखा है कि जब भी जीवनशैली थोड़ी संतुलित होती है – समय पर खाना, थोड़ा टहलना और पर्याप्त पानी – तो गैस से जुड़ा पीठ दर्द अपने आप कम होने लगता है। इसलिए इलाज के साथ–साथ खान-पान और दिनचर्या पर काम करना भी बहुत ज़रूरी होता है।

पीठ दर्द करने वाली गैस के सामान्य आहार संबंधी कारण

पाचन से जुड़ी कोई भी समस्या केवल एक–दो चीज़ों की वजह से नहीं होती, बल्कि खाने की कई छोटी–छोटी आदतें मिलकर गैस और फिर पीठ दर्द को जन्म देती हैं। जब यह समझ आ जाए कि आहार में कौन सी बातें गैस बढ़ा रही हैं, तभी सही बदलाव करना आसान होता है।

  • बहुत जल्दी–जल्दी खाना या पीना
    जल्दबाज़ी में बड़े–बड़े निवाले निगलना या चाय–कॉफी को जल्दी–जल्दी खत्म करना, साथ में हवा भी ज़्यादा निगलवाता है। इसे एरोफेजिया कहा जाता है। यह अतिरिक्त हवा पेट और आंतों में जाकर गैस और पेट फूलने का कारण बनती है, और जिनका पाचन पहले से कमजोर हो, उनमें यह दबाव पीठ तक भी महसूस हो सकता है।
  • उच्च फाइबर वाला आहार, लेकिन संतुलन के बिना
    दाल, चना, राजमा, काबुली चना, ब्रोकली, पत्ता गोभी और साबुत अनाज फाइबर से भरपूर होते हैं। लेकिन अगर अचानक बहुत ज़्यादा मात्रा में इनका सेवन शुरू किया जाए, या पानी कम पिया जाए, तो यही फाइबर आंतों में अधिक गैस पैदा कर सकता है। ऐसे लोगों को लगता है कि “सेहतमंद खाना” खा रहे हैं, लेकिन फिर भी पेट फूलता है और साथ में कमर में खिंचाव–सा लगता है।
  • कार्बोनेटेड पेय
    कोल्ड ड्रिंक, सोडा या एनर्जी ड्रिंक में पहले से ही गैस मिली होती है। इन्हें पीने पर कार्बन डाइऑक्साइड पेट में चली जाती है, जिससे डकार, पेट फूलना और भारीपन महसूस हो सकता है। अगर इनके साथ तला–भुना या मसालेदार खाना हो, तो समस्या और बढ़ जाती है।
  • कृत्रिम मिठास
    सोर्बिटोल, मैनिटोल या अन्य कृत्रिम स्वीटनर वाले डायट ड्रिंक, शुगर–फ्री मिठाइयां या च्युइंग गम शरीर के लिए पूरी तरह पचाना आसान नहीं होते। इनके टूटने पर आंतों के बैक्टीरिया गैस बनाते हैं, जिससे पेट में सूजन और दबाव बढ़ता है।
  • स्ट्रीट फूड और तला–भुना खाना
    समोसा, कचौड़ी, घुघनी, चाट, चाउमीन, रोल और मोमोज़ में तेल, मसाला और मैदा की मात्रा ज़्यादा होती है। रोज़ाना या बहुत बार इनका सेवन करने से पेट पर लगातार बोझ बना रहता है और गैस, कब्ज़ व एसिडिटी की संभावना बढ़ जाती है।

राज हॉस्पिटल्स के पोषण विशेषज्ञ अक्सर मरीज़ों को सलाह देते हैं कि ऐसे खाने को पूरी तरह छोड़ने की बजाय:

  • मात्रा कम रखें
  • आवृत्ति घटाएं
  • साथ में दही, सलाद और पानी की मात्रा बढ़ाएं

ताकि पाचन संतुलित रहे और गैस से पीठ दर्द की संभावना घटे।

क्या आप गैस या पेट फूलने से पीठ दर्द महसूस कर रहे हैं?

लगातार गैस, पेट में भारीपन, बीच-बीच में उठने वाला पीठ दर्द, भूख न लगना या एसिडिटी – ये पाचन संबंधी समस्या के संकेत हो सकते हैं। देर करने से दर्द बढ़ सकता है। रांची के Raj Hospital में विशेषज्ञ गैस्ट्रो और मेडिसिन टीम उन्नत जांच और सुरक्षित इलाज प्रदान करती है।

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जीवनशैली की आदतें जो गैस और पीठ दर्द को बढ़ाती हैं

सिर्फ़ खाना ही नहीं, रोज़मर्रा की कुछ आदतें भी यह तय करती हैं कि क्या गैस से पीठ में दर्द हो सकता है और यह दर्द कितने समय तक परेशान करेगा। कई बार लोग दवाएं बदल–बदलकर देखते हैं, लेकिन दिनचर्या में छोटी–सी भी सुधार नहीं करते, जिससे समस्या बार–बार लौट आती है।

  • धूम्रपान
    सिगरेट या बीड़ी पीते समय धुआं के साथ काफी हवा भी अंदर चली जाती है, जो गैस बनकर पेट में जमा हो सकती है। निकोटिन पेट की झिल्ली को नुकसान पहुंचाता है, जिससे एसिडिटी और गैस बढ़ जाती है। लंबे समय तक ऐसा चलने पर कमर और पीठ की मांसपेशियां भी लगातार सूजन वाले माहौल में काम करती हैं, जिससे उनमें दर्द और जकड़न बढ़ सकती है।
  • तंग कपड़े और बेल्ट
    बहुत कसा हुआ बेल्ट, लो–वेस्ट जींस या पेट को अंदर दबाकर रखने वाले कपड़े लंबे समय तक पहनने से आंतों की स्वाभाविक हरकत बाधित हो सकती है। ऐसे में गैस बाहर निकलने के बजाय अंदर ही फंसने लगती है और पेट की दीवार को भीतर से दबाती है, जिससे कई लोगों को कमर के निचले हिस्से में खिंचाव जैसा दर्द महसूस होता है।
  • अत्यधिक शराब और बार–बार पेनकिलर
    शराब पेट की अंदरुनी परत पर सीधा असर डालती है और NSAIDs जैसी दर्द निवारक दवाएं पेट के पीएच को बिगाड़ती हैं। इससे गैस्ट्राइटिस, अल्सर, गैस और पीठ दर्द का मिला–जुला असर दिख सकता है। कई लोग कमरदर्द के लिए खुद ही पेनकिलर लेते रहते हैं, जबकि असली कारण पेट होता है, और इस तरह वे समस्या को और गहरा करते जाते हैं।
  • तनाव, नींद की कमी और गतिहीन जीवनशैली
    लगातार तनाव में रहने पर शरीर सतर्क मोड में चला जाता है और पाचन की ओर कम ध्यान देता है। खाने का पाचन धीमा, गैस ज़्यादा, पेट फूलना आम हो जाता है। अगर इसके साथ रात में देर तक मोबाइल, सुबह देर से उठना और दिन भर कुर्सी पर बैठना जुड़ जाए, तो गैस और पीठ दर्द दोनों के लिए पूरी ज़मीन तैयार हो जाती है।

राज हॉस्पिटल्स की टीम ने कामकाजी वर्ग में यह पैटर्न बार–बार देखा है, इसलिए इलाज के साथ–साथ तनाव प्रबंधन और हल्की कसरत की सलाह हमेशा दी जाती है।

गैस और पीठ दर्द से जुड़ी चिकित्सीय स्थितियां

कई लोगों के मन में लगातार यही सवाल रहता है कि क्या गैस से पीठ में दर्द हो सकता है या कहीं कोई गंभीर बीमारी तो नहीं छिपी। ज़्यादातर बार साधारण गैस ही कारण होती है, लेकिन कुछ स्थितियों में पाचन तंत्र या अन्य अंगों की बीमारियां भी इसी तरह के लक्षण दे सकती हैं।

गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल स्थितियां

पाचन तंत्र से जुड़ी कुछ प्रमुख बीमारियां:

  • GERD (गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिज़ीज)
    पेट का हाइड्रोक्लोरिक एसिड बार–बार भोजन नली में लौट आता है। लक्षण – सीने में जलन, खट्टी डकार, गले में कफ, आवाज़ बैठना और कई बार छाती व ऊपरी पीठ में दर्द।
  • गैस्ट्राइटिस और अल्सर
    पेट की अंदरुनी परत में सूजन आ जाती है। कारण – बैक्टीरिया, शराब, ज़्यादा मसालेदार भोजन या कुछ दवाएं। लक्षण – पेट के ऊपरी हिस्से में जलन, भरा–भरा महसूस होना, मतली, कभी–कभी उल्टी और पेट से पीठ की ओर फैलता हुआ दर्द।
  • खाद्य असहिष्णुता (लैक्टोज, ग्लूटेन आदि)
    दूध–दही या गेहूं से बनी चीज़ें कुछ लोगों में दस्त, कब्ज़, गैस, थकान और पीठ दर्द का मिलाजुला रूप दे सकती हैं।
  • कब्ज़, SIBO और IBD
    • लंबे समय तक मल जमा रहने पर आंतें फूल जाती हैं, जिससे पेट और रीढ़ पर दबाव बढ़कर निचले हिस्से में दर्द दे सकता है।
    • SIBO (छोटी आंत में बैक्टीरिया की अत्यधिक वृद्धि) और IBD (इंफ्लेमेटरी बाउल डिज़ीज) में भी गैस, पेट दर्द और पीठ दर्द साथ–साथ दिख सकते हैं।

राज हॉस्पिटल्स के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी विभाग में इन स्थितियों की पहचान के लिए विस्तृत इतिहास, शारीरिक जांच, खून और स्टूल की जांच, अल्ट्रासाउंड, एंडोस्कोपी और ज़रूरत पड़ने पर बायोप्सी की मदद ली जाती है।

अन्य संभावित गंभीर स्थितियां

सभी गैस और पीठ दर्द सिर्फ़ पाचन तंत्र से नहीं जुड़े होते:

  • गर्भावस्था में बढ़ता हुआ गर्भाशय आंतों और रीढ़ दोनों पर दबाव डालता है, जिससे गैस, कब्ज़ और पीठ दर्द साथ–साथ दिखते हैं।
  • मासिक धर्म के दिनों में भी कई महिलाओं को पेट फूलना, ऐंठन और कमरदर्द रहता है।
  • मूत्र पथ संक्रमण (UTI) में निचले पेट और पीठ के बीच दर्द, पेशाब में जलन और बुखार हो सकता है।
  • पित्ताशय की पथरी, तीव्र अग्नाशयशोथ, गुर्दे की पथरी और कुछ कैंसर (जैसे अग्नाशय या यकृत से संबंधित) में पेट और पीठ में तेज दर्द, वजन घटना, भूख कम होना, गहरे रंग का पेशाब और थकान जैसे लक्षण दिख सकते हैं।

ऐसे मामलों में समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। राज हॉस्पिटल्स की चौबीसों घंटे चलने वाली आपातकालीन सेवाएं, आधुनिक ICU और रूफटॉप हेलिपैड गंभीर मरीज़ों को जल्दी पहुंचाने और इलाज शुरू करने में मदद करते हैं।

मस्कुलोस्केलेटल मांसपेशियों और हड्डियों से संबंधित कारण

बहुत–से मामलों में पीठ दर्द सीधे–सीधे हड्डियों, जोड़ों या मांसपेशियों से जुड़ा होता है:

  • गठिया (आर्थराइटिस) – जोड़ों में सूजन और कठोरता, जिससे कमर, कूल्हों और घुटनों में दर्द।
  • ऑस्टियोपोरोसिस – कमजोर हड्डियां, हल्की–सी चोट या झुकने–उठने से भी सूक्ष्म फ्रैक्चर और लगातार दर्द।
  • मांसपेशी खिंचाव और स्लिप डिस्क – गलत तरीके से वज़न उठाना, गलत पोस्चर या अचानक तेज मोड़ लेने से नसों पर दबाव, कमर से पैरों तक जाता हुआ दर्द, झुनझुनी या कमजोरी।

राज हॉस्पिटल्स का ऑर्थोपेडिक्स विभाग और फिजियोथेरेपी यूनिट मिलकर ऐसे मरीज़ों का इलाज करते हैं, ताकि यह साफ़ हो सके कि दर्द हड्डियों–जोड़ों से है, या गैस और पाचन समस्या से जुड़ा है, या दोनों का मेल है।

गैस से होने वाले पीठ दर्द के लक्षणों को कैसे पहचानें

हर पीठ दर्द को गैस समझ लेना भी सही नहीं है, और हर गैस वाले मरीज़ में पीठ दर्द हो, यह भी ज़रूरी नहीं। इसलिए यह जानना मददगार है कि कब यह माना जा सकता है कि क्या गैस से पीठ में दर्द हो सकता है और यह दर्द वास्तव में गैस से ही जुड़ा है।

ध्यान देने योग्य कुछ संकेत:

  • पेट फूलना (ब्लोटिंग)
    पीठ दर्द के साथ–साथ पेट कसा–कसा, भारी या गुब्बारे जैसा लगे, कपड़े अचानक टाइट महसूस हों, बेल्ट कसने पर असहजता बढ़े – यह संकेत हो सकता है कि आंतों में गैस ज़्यादा जमा है। डकार या अधोवायु निकलने के बाद पेट हल्का लगे और साथ–साथ पीठ का दर्द भी कुछ कम हो जाए, तो यह शक और मज़बूत होता है।
  • पेट में ऐंठन या मरोड़
    गैस जब आंतों के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में खिसकती है, तो कुछ–कुछ समय पर तेज चुभन या ऐंठन जैसा दर्द महसूस हो सकता है, जो कभी पेट के ऊपर–नीचे और कभी पीठ के निचले हिस्से में महसूस होता है।
  • एसिडिटी से जुड़े लक्षण
    सीने में जलन, खट्टी डकार, गले में कफ, आवाज़ बैठना और कभी–कभी खांसी के साथ अगर ऊपरी पीठ (कंधों के बीच वाले हिस्से) में जलन या दर्द हो, तो यह GERD या एसिडिटी से जुड़ी गैस का संकेत हो सकता है।
  • दर्द की प्रकृति
    गैस से होने वाला दर्द अधिकतर हल्का, फैला हुआ और दबाव जैसा होता है, जो:
    • शरीर की स्थिति बदलने
    • थोड़ा चलने–फिरने
    • या गैस पास होने के बाद
      कुछ समय के लिए कम हो जाता है।
      अगर दर्द एक ही जगह सूई की नोंक जैसा चुभता रहे, छूने पर बहुत बढ़ जाए, या पैरों तक ज़ोर से जाए, तो इसकी वजह मांसपेशी, नस या हड्डी भी हो सकती है।

राज हॉस्पिटल्स में ऐसे मरीज़ों की जांच के लिए विस्तृत बातचीत, शारीरिक परीक्षण, खून और पेशाब की रिपोर्ट, अल्ट्रासाउंड, एक्स–रे, एंडोस्कोपी और ज़रूरत पड़ने पर सीटी स्कैन या एमआरआई जैसी जांच की जाती हैं, ताकि यह साफ़ किया जा सके कि दर्द की असली जड़ कहां है।

घरेलू उपचार और तत्काल राहत के उपाय

Person practicing gentle yoga for digestive health

जब अचानक गैस के साथ पीठ में दर्द शुरू हो जाए, तो हर बार तुरंत अस्पताल पहुंचना ज़रूरी नहीं होता। हल्के–फुल्के मामलों में घर पर ही कुछ सरल उपाय करके काफी राहत मिल सकती है, बशर्ते कि दर्द हल्का हो, कम समय के लिए हो और इसके साथ कोई रेड फ्लैग लक्षण न हो।

कुछ उपयोगी घरेलू उपाय:

  • गर्म सिकाई
    पीठ के निचले या जिस हिस्से में दर्द हो, वहां गर्म पानी की बोतल या हीटिंग पैड रखा जा सकता है। गर्माहट मांसपेशियों को आराम देती है, खून के प्रवाह को बढ़ाती है और गैस से बने दबाव की वजह से आई जकड़न को कम करती है। तापमान बहुत ज़्यादा न हो और हर बार 15–20 मिनट से ज़्यादा लगातार सिकाई न की जाए।
  • हल्के व्यायाम और योग
    पवनमुक्तासन, मर्जरी–बितिलासन (कैट–काउ), बालासन (चाइल्ड पोज़) जैसे आसन पेट पर हल्का दबाव डालते हैं, जिससे गैस आसानी से खिसककर बाहर निकल सकती है। राज हॉस्पिटल्स का फिजियोथेरेपी विभाग मरीज़ों को ऐसे सरल व्यायाम सिखाता है, जिन्हें घर पर ही सुरक्षित तरीके से किया जा सकता है।
  • धीमा टहलना
    भारी खाना खाने के तुरंत बाद लेटने की बजाय 10–15 मिनट आराम से टहलने से पाचन तंत्र सक्रिय होता है और गैस धीरे–धीरे पूरे सिस्टम से बाहर निकलती रहती है।
  • एंटासिड और सिमेथिकोन (डॉक्टर की सलाह से)
    एंटासिड पेट के एसिड को कुछ समय के लिए संतुलित करते हैं और सिमेथिकोन गैस के बुलबुलों को तोड़ने में मदद कर सकता है। लेकिन बार–बार खुद से दवा लेना सही नहीं, क्योंकि इससे असली बीमारी छिप सकती है।
  • रसोई में मौजूद साधारण नुस्खे
    गुनगुने पानी में थोड़ा अजवाइन और काला नमक, सौंफ चबाना, हल्की अदरक या पुदीने की चाय कई लोगों में गैस कम करने में सहायक होती है। पेट की हल्की मालिश भी दक्षिणावर्त दिशा में (घड़ी की सुई की दिशा में) की जाए, तो आंतों की दिशा के अनुरूप होने के कारण गैस खिसकने में मदद मिल सकती है।

अगर इन उपायों के बावजूद बार–बार वही सवाल लौट आए कि क्या गैस से पीठ में दर्द हो सकता है और हर हफ्ते–दस दिन में वही तकलीफ़ दोहराए, तो यह संकेत है कि केवल घरेलू नुस्खे काफी नहीं हैं और डॉक्टर से मिलना ज़रूरी है।

दीर्घकालिक राहत के लिए जीवनशैली और आहार में बदलाव

तत्काल राहत के उपाय अपनी जगह हैं, लेकिन अगर बार–बार गैस और पीठ दर्द लौटते रहें, तो असली ज़रूरत दीर्घकालिक बदलाव की होती है। जब तक खाने और रहने की आदतों में सुधार नहीं होता, तब तक स्थायी आराम मिलना मुश्किल हो जाता है।

मुख्य सुधार बिंदु:

  • खाने का ढंग
    भोजन को जल्दी–जल्दी निगलने की बजाय छोटे–छोटे निवाले लेकर अच्छी तरह चबाकर खाना, पाचन पर बोझ कम करता है और हवा कम निगली जाती है। कोशिश करें कि टीवी, मोबाइल या लैपटॉप देखते हुए खाने के बजाय शांत माहौल में ध्यान से खाएं।
  • ट्रिगर फूड की पहचान
    हर व्यक्ति के लिए गैस बनाने वाली चीज़ें अलग हो सकती हैं। कोई गोभी या चना से परेशान होता है, कोई दूध या तली चिकन से। एक छोटी–सी फूड डायरी रखी जा सकती है, जिसमें दिन भर क्या–क्या खाया और उसके बाद पेट व पीठ की स्थिति कैसी रही, यह लिखा जाए। कुछ हफ्तों में ही पैटर्न साफ़ नज़र आने लगता है।
  • पर्याप्त पानी और फाइबर
    दिन में लगभग 8–10 गिलास पानी पचना आसान बनाता है और कब्ज़ से बचाव करता है। सुबह गुनगुना पानी, दिन में बीच–बीच में सादा पानी और बहुत मीठे या बहुत ठंडे पेय से बचना मददगार है। फल, सलाद, सब्ज़ियां और साबुत अनाज जैसे फाइबर वाले खाद्य पदार्थों को धीरे–धीरे बढ़ाना चाहिए।
  • नियमित समय पर खाना
    रोज़ाना लगभग एक ही समय पर नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना लेने से शरीर की जैविक घड़ी स्थिर रहती है। लंबे गैप के बाद बहुत ज़्यादा खाना या दिन भर न खाकर रात में भारी भोजन करना, गैस और एसिडिटी की संभावना बढ़ा देता है।
  • तनाव प्रबंधन, नींद और व्यायाम
    ध्यान, प्राणायाम, हल्का योग, शाम की सैर या सुबह की वॉक जैसी गतिविधियां दिमाग को शांत करती हैं और पाचन तंत्र को बेहतर काम करने का मौका देती हैं। रोज़ाना कम से कम 30 मिनट शरीर को हलचल में रखना – जैसे तेज़ चलना, सीढ़ियां चढ़ना या कोई खेल – आंतों की गति और पीठ की मांसपेशियों दोनों के लिए फायदेमंद है।
  • आरामदायक कपड़े और प्रोबायोटिक आहार
    ढीले और आरामदायक कपड़े, खासकर पेट और कमर के आसपास, आंतों पर दबाव कम करते हैं। दही, छाछ, घर का बना अचार, इडली, डोसा जैसे किण्वित खाद्य पदार्थ अच्छे बैक्टीरिया (प्रोबायोटिक्स) बढ़ाने में मदद करते हैं।

रांची की जीवनशैली को देखते हुए राज हॉस्पिटल्स के पोषण विशेषज्ञ मरीज़ों के लिए ऐसी आहार योजनाएं बनाते हैं, जिनमें दाल–भात, लिट्टी–चोखा और स्थानीय व्यंजनों को पूरी तरह हटाने की बजाय संतुलन बनाकर शामिल किया जाता है, ताकि स्वाद और सेहत दोनों साथ चल सकें।

डॉक्टर से कब संपर्क करना चाहिए – चेतावनी के संकेत

हर हल्की गैस और थोड़े से पीठ दर्द के लिए घबराने की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन कुछ स्थितियां ऐसी होती हैं, जिनमें देर करना खतरनाक हो सकता है। यह पहचानना बहुत ज़रूरी है कि कब सवाल सिर्फ़ इतना नहीं रहता कि क्या गैस से पीठ में दर्द हो सकता है, बल्कि यह भी हो जाता है कि कहीं इसके पीछे कोई गंभीर बीमारी तो नहीं छिपी।

निम्न परिस्थितियों में तुरंत डॉक्टर से मिलें:

  • दर्द बहुत तेज़ हो, घंटों बना रहे या रोज़–रोज़ दोहराए और साधारण घरेलू उपाय या सामान्य दवाओं से भी आराम न मिले।
  • दर्द के कारण चलना, बैठना, झुकना या सोना मुश्किल हो जाए।
  • नीचे दिए गए रेड फ्लैग लक्षणों में से कोई दिखे:
    • बुखार, ठंड लगना
    • बिना कारण वजन घटना
    • रात में ज़्यादा पसीना आना
    • पैरों में सुन्नता या कमजोरी, चलने में डगमगाहट
    • पेशाब या मल पर नियंत्रण में कमी
    • पेट में अचानक और असहनीय दर्द
    • काला या तारकोल जैसा मल, खून की उल्टी
    • छाती में भारीपन या सांस लेने में दिक्कत

लगातार दो हफ्तों से अधिक समय तक गैस, पेट फूलना, एसिडिटी, मतली, भूख कम होना या पेट से पीठ की ओर फैलता दर्द बना रहे, तो भी डॉक्टर से परामर्श ज़रूरी है। मधुमेह, हृदय रोग, गुर्दे की बीमारी, लीवर की बीमारी या कैंसर जैसी पुरानी बीमारियों से ग्रस्त लोगों और गर्भवती महिलाओं को गैस और पीठ दर्द को लेकर और भी सतर्क रहना चाहिए।

राज हॉस्पिटल्स में चौबीसों घंटे आपातकालीन सेवाएं, अनुभवी गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट, ऑर्थोपेडिक विशेषज्ञ, न्यूरोलॉजिस्ट और इंटेंसिव केयर टीम हर समय उपलब्ध रहती है। रांची के केंद्र में स्थित यह अस्पताल आसानी से पहुंच में है, और रूफटॉप हेलिपैड की सुविधा दूर–दराज़ इलाकों से गंभीर मरीज़ों को भी जल्दी लाने में मदद करती है।

राज हॉस्पिटल्स में पाचन संबंधी समस्याओं का निदान और उपचार

Modern medical examination room with diagnostic equipment

बार–बार गैस और उससे जुड़े पीठ दर्द की समस्या हो, तो सही जगह और सही विशेषज्ञ का चुनाव बहुत मायने रखता है। राज हॉस्पिटल्स रांची का एक विश्वसनीय सुपर–स्पेशियलिटी अस्पताल है, जो पिछले 27+ वर्षों से झारखंड और आसपास के क्षेत्रों के लोगों को संपूर्ण चिकित्सा सेवा दे रहा है। 89+ अनुभवी डॉक्टरों की टीम और 89,438 से अधिक मरीज़ों का भरोसा इस अस्पताल की ताकत है।

यहां समर्पित गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी विभाग पाचन तंत्र से जुड़ी हर तरह की समस्या – जैसे गैस, पेट फूलना, एसिडिटी, अल्सर, लीवर और अग्न्याशय की बीमारियां, आंतों की सूजन आदि – के निदान और इलाज में विशेषज्ञता रखता है। एंडोस्कोपी, कोलोनोस्कोपी, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, पीएच मॉनिटरिंग, मैनोमेट्री और उन्नत लैब जांच जैसी आधुनिक सुविधाएं एक ही छत के नीचे उपलब्ध हैं, जिससे मरीज़ को अलग–अलग जगह भागना नहीं पड़ता।

इलाज की योजना सिर्फ़ दवाओं तक सीमित नहीं रहती:

  • डाइटीशियन मरीज़ के खान-पान, वजन, उम्र, पेशे और स्थानीय पसंद–नापसंद को समझकर व्यावहारिक आहार परामर्श देते हैं।
  • जीवनशैली में बदलाव, तनाव प्रबंधन और नियमित व्यायाम के लिए विशेष काउंसिलिंग की व्यवस्था रहती है।
  • जब गैस से जुड़ा पीठ दर्द हड्डियों, जोड़ों या नसों के कारणों से भी मिला–जुला हो, तब गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी, ऑर्थोपेडिक्स और फिजियोथेरेपी विभाग मिलकर समग्र योजना बनाते हैं।

“सिर्फ़ दर्द कम करना इलाज नहीं है; ज़रूरी यह है कि दर्द की जड़ पहचानी जाए और मरीज़ की पूरी जीवनशैली को ध्यान में रखकर देखभाल की जाए।”
राज हॉस्पिटल्स सीनियर कंसल्टेंट

राज हॉस्पिटल्स की एक और खासियत इसकी रोगी–केंद्रित देखभाल है। यहां हर मरीज़ की स्थिति, पारिवारिक ज़िम्मेदारियां, आर्थिक स्थिति और मानसिक अवस्था को ध्यान में रखकर उपचार योजना तैयार की जाती है, ताकि उच्च स्तर की सुविधा समाज के अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच सके।

निष्कर्ष

अब तक की सभी बातों को मिलाकर देखा जाए, तो स्पष्ट हो जाता है कि कई स्थितियों में सचमुच गैस से पीठ में दर्द हो सकता है। आंतों में जमा गैस, पेट की सूजन, एसिडिटी, रेफर्ड पेन और शरीर में फैली सूजन – ये सब मिलकर पीठ की मांसपेशियों और नसों को प्रभावित कर सकते हैं। रांची की जीवनशैली, जिसमें तला–भुना खाना, अनियमित भोजन, तनाव और कम शारीरिक गतिविधि आम हैं, इस समस्या को और बढ़ा देती है।

घरेलू उपाय – जैसे गर्म सिकाई, हल्के योग आसन, टहलना, हर्बल पेय और थोड़े समय के लिए ली गई दवाएं – हल्के मामलों में काफी राहत दे सकते हैं। लेकिन लम्बे समय के सुधार के लिए धीरे–धीरे और चबाकर खाना, ट्रिगर खाद्य पदार्थों की पहचान, पर्याप्त पानी और फाइबर, नियमित व्यायाम, अच्छी नींद और तनाव प्रबंधन जैसे बदलाव अपनाना आवश्यक है।

जब भी दर्द बार–बार लौटे, बहुत तेज़ हो या उसके साथ गंभीर लक्षण नज़र आएं, तो स्वयं–उपचार पर निर्भर रहने की बजाय डॉक्टर से मिलना बेहतर है। राज हॉस्पिटल्स रांची और झारखंड के लोगों के लिए भरोसेमंद और सुलभ स्वास्थ्य सेवा देने के लिए समर्पित है। यहां की अनुभवी टीम पाचन तंत्र, हड्डियों और नसों – सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर यह समझने की कोशिश करती है कि गैस, पीठ दर्द और अन्य लक्षणों के बीच वास्तविक संबंध क्या है और मरीज़ को संपूर्ण राहत कैसे दी जाए।

अपने पाचन स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ न करें; समय पर सही जांच और सही सलाह से ज़्यादातर मामलों में पूरी या लगभग पूरी राहत संभव है। ज़रूरत महसूस हो, तो बिना झिझक राज हॉस्पिटल्स, रांची में परामर्श के लिए अपॉइंटमेंट बुक किया जा सकता है।

क्या आप गैस या पेट फूलने से पीठ दर्द महसूस कर रहे हैं?

लगातार गैस, पेट में भारीपन, बीच-बीच में उठने वाला पीठ दर्द, भूख न लगना या एसिडिटी – ये पाचन संबंधी समस्या के संकेत हो सकते हैं। देर करने से दर्द बढ़ सकता है। रांची के Raj Hospital में विशेषज्ञ गैस्ट्रो और मेडिसिन टीम उन्नत जांच और सुरक्षित इलाज प्रदान करती है।

Ranchi के Gastro Specialist से तुरंत सलाह लें

क्या गैस के कारण होने वाला पीठ दर्द गंभीर हो सकता है

अधिकतर मामलों में गैस से होने वाला पीठ दर्द अस्थायी और कम गंभीर होता है। पेट में गैस जमा होने से जो दबाव और सूजन बनती है, वह कम होने पर दर्द भी धीरे–धीरे कम हो जाता है और साधारण घरेलू उपाय या हल्की दवाओं से आराम मिल जाता है। लेकिन अगर बार–बार यही सवाल उठे कि क्या गैस से पीठ में दर्द हो सकता है और हर कुछ दिन या हफ्ते में वही समस्या लौट आए, तो इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।
जब गैस के साथ:
तेज़ या लगातार पीठ दर्द
बुखार, वजन घटना, भूख कम होना
मतली, उल्टी
पैरों में सुन्नता या कमजोरी
छाती में जलन, काला मल या सांस फूलना
जैसे लक्षण भी दिखें, तो यह किसी गंभीर पाचन रोग, रीढ़ की बीमारी, गुर्दे की समस्या या अन्य गंभीर स्थिति का संकेत हो सकता है। ऐसे में केवल गैस की दवा लेकर इंतज़ार करने की बजाय तुरंत डॉक्टर को दिखाना ज़रूरी है। राज हॉस्पिटल्स में गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट, ऑर्थोपेडिक और न्यूरोलॉजिस्ट मिलकर ऐसे मामलों का सटीक निदान करने में मदद करते हैं।

गैस के कारण पीठ में कहां दर्द होता है

गैस से होने वाला पीठ दर्द आमतौर पर:
कमर के निचले हिस्से में, नाभि के आसपास के क्षेत्र के ठीक पीछे
भारीपन या दबाव जैसा
पेट फूलने और भरे–भरेपन के साथ
महसूस होता है। कुछ लोगों को झुकने, आगे की ओर मुड़ने या लंबे समय तक बैठने पर यह दर्द बढ़ता हुआ लगता है और सीधा खड़े होने या थोड़ा चलने से कुछ कम महसूस होता है।
यदि गैस और एसिडिटी ऊपर के हिस्से में हो (जैसे GERD), तो दर्द:
कंधों के बीच वाले ऊपरी पीठ में
या छाती के पीछे
भी महसूस हो सकता है। दर्द का सही स्थान व्यक्ति–व्यक्ति पर निर्भर करता है और हमेशा एक जैसा नहीं होता, इसलिए केवल जगह देखकर खुद से अनुमान लगाने की बजाय, अगर दर्द बार–बार या लंबे समय तक रहे, तो डॉक्टर से राय लेना बेहतर है।

रांची में कौन से खाद्य पदार्थ सबसे अधिक गैस का कारण बनते हैं

रांची और झारखंड के लोकप्रिय व्यंजनों में कई ऐसी चीज़ें हैं, जो स्वादिष्ट होने के साथ–साथ कुछ लोगों में गैस भी बढ़ा सकती हैं, जैसे:
तली–भुनी कचौड़ी, समोसा, पकौड़ी, घुघनी, मसालेदार चाट
सड़क किनारे मिलने वाला चाउमीन, मोमोज़, रोल, बर्गर
इन सबके साथ लिया जाने वाला कोल्ड ड्रिंक या मीठा सोडा
ये खाने पेट के लिए भारी हो सकते हैं, खासकर जब इन्हें अक्सर और ज़्यादा मात्रा में खाया जाए। इसके अलावा:
दाल, चना, राजमा, पत्ता गोभी, ब्रोकली
साबुत अनाज (अगर अचानक बहुत ज़्यादा मात्रा में और कम पानी के साथ लिए जाएं)
कृत्रिम मिठास वाले ड्रिंक या शुगर–फ्री मिठाइयां
भी कुछ लोगों में गैस बढ़ा सकते हैं।
राज हॉस्पिटल्स के पोषण विशेषज्ञ अक्सर मरीज़ों को सलाह देते हैं कि वे फूड डायरी के ज़रिए यह पहचानें कि उनके लिए कौन–सी विशेष चीज़ें बार–बार गैस और पीठ दर्द की वजह बन रही हैं, और फिर उन्हें कम या संतुलित मात्रा में शामिल करें, ताकि स्वाद और सेहत दोनों का संतुलन बना रहे।
इन आम सवालों के अलावा यदि मन में कोई और शंका हो, या लगे कि बार–बार गैस से पीठ में दर्द हो रहा है और रोज़मर्रा की ज़िंदगी प्रभावित हो रही है, तो खुद से अनुमान लगाने की बजाय विशेषज्ञ से मिलना बेहतर है। डॉक्टर से मिलने से पहले अपने लक्षणों, खाने की आदतों और अब तक ली गई दवाओं की जानकारी लिखकर ले जाना भी मददगार होता है, ताकि कम समय में पूरी तस्वीर साफ़ हो सके और सही जांच व इलाज की योजना बनाई जा सके।

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